*2 अक्टूबर 1187 यौमे फ़तैह बैतूल मुकद्दस (Jerusalem)*
بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِ
✍🏼 आफाक रज़वी की कलम से
दोस्तों शायद ही किसी मुसलमान को याद होगा की 2 अक्टूबर 1187 बैतूल मुकद्दस (Jerusalem) यौमुल फ़तैह है। जी हाँ दोस्तों इस दज्जाली दौर में हम इस क़दर मायूस होगये हैं की अपनी असल पहचान ही भूल गए। आज हम अपने इस पोस्ट में मुख़्तसरान इस टॉपिक पर बात करेंगे।
मेडिवल दौर में जहां एक तरफ सारी दुनिया में इम्पेरिअलिस्म का माहौल था , वही दूसरी तरफ मुस्लिम आर्किटेक्चर अपने शबाब पर था। अपनी हुकूमत को बढ़ाने के साथ ही कुछ इस्लामी हुक्मरानो ने दरियादिली, बहादुरी की मिसालें भी पेश कीं, उन्हीं में से एक 12वीं सदी के मर्दे मुजाहिद जिन्हे दुनिया सुल्तान सलाउद्दीन अय्यूबी के नाम से जानती है। जिन्होंने ईसाईयों से मस्जिदे अक़्सा को वापिस हासिल किया और वहां फिर से इस्लामी हुकूमत नफीस की।
हज़रत सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने जुलाई 1187 में जंगे हत्तिन में पहले क्रूसेडर्स (सलिबियो) को बुरी तरह हराया था, और उसके बाद बैतूल मुकद्दस (Jerusalem) सलिबियों से वापस लेने के लिए अपने लश्कर के साथ 20 सितंबर 1187 के दिन किले पर हमला करते है। इस लश्कर में फौजी तहज्जुद गुज़ार थे और उनमें से कई हुज़ूर गौसे आज़म رضي الله أنه के शागिर्दों में से थे।
जब फौज ऐसी अल्लाह वाली हो तो फ़तह तो उनका मुकद्दर ही बन जाती है।और ऐसा ही हुआ, शहर पर हमले के 12 दिनों के बाद ही 2 ऑक्टोबर 1187 के दिन बादशाह Balian of Ibelin (बेलीयन) तमाम होस्पिटलर नाइट्स और टेम्पलर नाइट्स के साथ क़ुद्स (बैतूल मुकद्दस, Jerusalem) को हज़रत सुल्तान सलाहउद्दीन अय्यूबी के हाथों में सरेंडर कर देता है।
जब बैतूल मुकद्दस (Jerusalem) आज़ाद किया जा रहा था, उस वक़्त दुनिया भर के कई बड़े बड़े उलमा, फुकाह और सूफिया वहाँ मौजूद थे।
जब बेलीयन जेरुसलम सरेंडर करता है तो सुल्तान से कहता कि "जब सलिबियो ने जेरूसलम पर कब्ज़ा किया था तो तमाम मुसलमानों को कत्ल कर दिया था, आप क्या करेंगे"
इसपे सुल्तान कहते है,
"मैं उनमे से नही हूँ, मैं सलाहउद्दीन हूँ सलाहउद्दीन"
जेरुसलेम वापस लेने के बाद सुल्तान ने तमाम ईसाई और यहूदियो को एक मामूली फिदिया के एवज़ आज़ाद कर दिया, जो ईसाई फिदिया नही दे सकते थे उनका फिदिया सुल्तान और उनके भाई अपनी जेब से देते है।
और तमाम ईसाइयो को मुस्लिम फौज ईसाई आबादी तक हिफ़ाज़त से छोड़ आतीे है।
बैतूल मुकद्दस की तारीख मुख्तसर अंदाज़ में-
सबसे पहले हज़रत उमर के दौरे खिलाफत में बैतूल मुकद्दस फ़तह किया गया था लेकिन सन 1099 में सलिबियो ने वहाँ हमला कर के लाखों मुसलमानों को कत्ल किया और इसपे कब्ज़ा कर लिया था।
कब्जे के 88 साल बाद यानी सन 1187 ई में इस मुकद्दस ज़मीं को दूसरी बार हज़रत सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने इसे आज़ाद करवाया।
अगले 730 सालो (1187-1917) के लिए अल कुद्स पर मुसलमानों की हुकूमत रही और इस्लामी हुकूमतों के दौर में ईसाई और यहूदियो को आज़ादी से यहां इबादत करने की इजाज़त थीं।
लेकिन 1917 में 1st World war (आलमी जंग) में ब्रिटेन, फ्रांस वगैरा ने मिलकर यहाँ हमला किया और ख़िलाफ़ते उस्मानिया को हटा कर यहाँ यहूदी रियासत इसराइल कायम की।
जब 1917 में यहाँ सलिबियो का कब्ज़ा हो गया तो फ्रांस के एक आर्मी अफसर दमिश्क (सीरिया) में सुल्तान की कब्र पर जा के कहता है "सलाहउद्दीन हम आगये हमे रोक के बताओ"
आज आप में से बहुतों के लिए ये मायने नहीं रखता है, लेकिन ये एक सच्चाई है कि बैतूल मुक़तद्दस मस्जिदे अक्सा हमारे प्यारे आका ﷺ की अमानत है जहां आपने मेराज की रात एक नमाज़ में तमाम नबियो की इमामत की
ये हज़रत उमर رضي الله أنه का उम्मत को दिया हुआ तोहफा है।
हज़रत खालिद बिन वलिद رضي الله أنه ने फिलिस्तीन तक पहुँचने के लिए मुल्के शाम (सीरिया) के रेगिस्तानो को पार किया और इस्लामि लश्कर को जंगे यरमुक में जीत दिलाई।
क़ुद्स (बैतूल मुकद्दस, Jerusalem) नबियों की सर ज़मीन है। और इस्लाम का तीसरा सबसे मुकद्दस शहर है।
आज बैतूल मुकद्दस यहूदियो के कब्जे में है और एक और सलाहउद्दीन के इंतेज़ार में है।
आज भी फ़िलिस्तीनी बच्चे इसराईलीयो की आंखों में आंखे डाल कर कहते है
नहनु अबना उल मुस्लिमीन
कुल्लुना सलाहउद्दीन
हम मुसलमानो के बच्चे है
हम में से हर कोई सलाहउद्दीन है
आप लोगो से गुजारिश है कि सुल्तान के लिए दुआ और इसाले सवाब करे।
और अल्लाह से दुआ करे कि वो मुसलमानों के लिए सलाहउद्दीन सानी भेजे।
आमीन
–आफाक अहमद रज़वी
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Allah fir Se wo din jaldi dikhaye ameen
ReplyDeleteAllah ek aur baar dikhade ameen
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