Muharram ul Haram 2023 | Is Muharram a happy festival? | What does Muharram mean? | मुहर्रमुल हराम 2023 | मुहर्रम का क्या मतलब है ?
नाज़रीन,
अस्सलामु अलैकुम
इस्लाम में
मुहर्रम
के
महीने
की
बहोत
अहमियत
है।
अक्सर
व
बेश्तर
लोग
मुहर्रम
के
बारे
में
पूछते
रहते
हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले
सवाल
कि मोहर्रम 2023 कब है?, मुहर्रम कब है?, मोहर्रम की पहली तारीख कब है?, 2023 में ताजिया कब है? इसके अलावा, What is Muharram celebrate for? , Is Muharram a happy festival? , Why do people beat themselves on Muharram? imam hussain story in hindi, how imam hussain was killed? imam hussain birthday, imam hussain karbala, imam hussain family tree, how did imam hussain as die?, imam hussain movie, hasan hussain story in hindi, imam hussain story in hindi, how imam hussain was killed?, imam hussain birthday,imam hussain karbala, imam hussain family tree, how did imam hussain as die? imam hussain movie,
Muharram ul Haram 2021
तो आज हम अपने इस ब्लॉग में इन्ही सारे सवालों के जवाब देंगे। जैसे कि
Why we do celebrate Muharram?
What does Muharram mean?
What date is Muharram?
Is Muharram a happy festival?
"मुहर्रम"
नाम "हराम" लफ्ज़ से लिया
गया है जिसका मतलब
है कि ममनूअ ( यानि
मना किया हुआ ) या
नाक़ाबिले तस्खीर ( जिसे कोई हरा
नहीं सकता ) क्योंकि इस महीने के
दौरान किसी भी किसी
भी क़िस्म कि गारत गिरी
, जंग , बेहुरमती , वगैरा सब हराम है।
सब
से पहले ये जान
लें कि सभी धर्मो
कि तरह इस्लामी कलैंडर
में भी बारह महीने
होते है। जिनमें से
पहला मुहर्रम का महीना होता
है।
अल्लाह तबारक
ताला
क़ुरान
में
इरशाद
फरमाता
ह।
बेशक
अल्लाह के नज़दीक महीनो
कि गिनती एक साल में
बारह है। और अल्लाह
कि किताब में जब से
उस ने आसमान और
ज़मीन बनाए उन में
से चार हुरमत वाले
महीने है। ये सीधा
दीन ह। तो
इन महीनो में अपनी जान
पर ज़ुल्म न कर।
दर
असल मक्का और उस के आस पास के लोगो में मुहम्मद स्वल्लल्लाहो
अलैहि वसल्लम
के आने से पहले ही से ये रिवाज क़ायम था कि इस महीने को लोग बहोत मुक़द्दस ताबीर करते। और इसे एक बरकत वाले महीने से तस्बीह देते। और
अल्लाह ने भी क़ुरान में इसे इस्लामी महीनो में चार मुक़द्दस महीनो में शामिल किया ह। जिसका
ज़िक्र हमने ऊपर क़ुरान कि आयात से किया ह।
मुहर्रम
न सिर्फ मुक़द्दस है, बल्कि इसे अल्लाह का महीना भी माना जाता ह। मुस्लिम शरीफ कि हदीस है, कि "आप
स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि रमजान के बाद सब से बेहतर रोज़े मुहर्रम
उल हराम के है।" इससे ये बात भी समझी जा सकती हैं कि मुहर्रम के महीने को अल्लाह
ने बहोत अहमियत बक्शी है , और उसे अपने नाम के साथ रखने का एज़ाज़ दिया है। साथ इस महीने
में रोज़े रखने को रमजान के रोज़ों के साथ तस्बीह देना इस बात का सबूत है कि इसकी अहमियत
बहोत ही खास है।
दर हक़ीक़त मुहर्रम के महीने के दौरान एक खास दिन होता है जिसम
रोज़ा रखने लिए तालीम दी जाती है। जिसे हम यौमे आशूरा कहते हैं, ये मुहर्रम कि १० तारीख
को मनाया जाता ह। जैसा मैंने पहले भी कहा है कि मुहम्मद स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम
के आने से पहले ही से ये बड़ी बरकत वाला महीना माना जाता है, और इस्लाम के जलवा फ़िगन
होने से पहले भी लोग इस महीने कि १० तारीख को रोज़े का एहतेमाम करते थे। बुखारी व मुस्लिम
शरीफ कि हदीस है कि हज़रात इब्न अब्बास रज़ि अल्लाह ताला अन्हुमा से रिवायत है कि जब
मुहम्मद स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम मदीने में आए और यहूदियों को अशुरा के दिन रोज़ा
रखते देखा तो आप स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने पुछा तुम लोग आज रोज़ा क्यों रखते हो?
तो उन्होंने जवाब दिया, “यह एक अच्छा दिन है; और ये वो दिन है जब अल्लाह ने बानी इसराइल
कि क़ौम को दुश्मनो से निजात दी। और फिर हज़रात मूसा अलैहिस्सलम ने इस दिन रोज़ा रक्खा।
तब आप मुहम्मद स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि हम मूसा के तुम से ज़्यादा
क़रीब हैं। लेहाज़ा आप ने खुद भी रोज़ा रक्खा
और सहाबा रिज़वानुल्लाहे ताला अजमईन को भी तलक़ीन फ़रमाई।
यहाँ
एक बात और ध्यान देना ज़रूरी है कि रमज़ानुल मुबारक के रोज़े जब फ़र्ज़ नहीं हुए थे , तो
आप स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम मुहर्रम ही का रोज़ा रखने कि तलक़ीन कि यहाँ तक कि बगैर
किसी उज़्र शरई कोई इसे न छोड़त। मुस्लिम शरीफ
कि हदीस है कि उम्मुल मोमेनीन हज़रात आयेशा सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाह अन्हा से रिव्यात है कि
जब रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ हुए तो आशूरा का रोज़ा नफिल क़रार दिया गया कि अगर कोई न भी रक्खे
तो कोई गुनाह नहीं। एक बात और इब्न अब्बास रज़ि अल्लाह ताला अन्हुमा से रिवायत है आप
स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि यौमे आशूरा का रोज़ा रक्खो और इसके एक दिन पहले
या बाद में भी रोज़ा रक्खो ताकि यहूदियों से मुशाबेहत न हो। ये ही वजह है कि मुसलमान 9वी और 10वि या फिर 10वी और 11वी तारिख का रोज़ा रखते हैं।
आम तौर पर रोज़े के बहोत से इनामात है। अल्लाह फरमाता है कि आदम का हर अमल उसके खुद के लिए हैं सिवा रोज़े के कि ये सिर्फ मेरे लिए हैं। और इसका बदला भी मैं खास दूंगा।
आप स्वल्लल्लाहो
अलैहि वसल्लम ने मुहर्रम के रोज़े कि कुछ फ़ज़िलतें भी बयां कि है कि मैं अल्लाह से उम्मीद
रखता ही कि अल्लाह अरफ़े के रोज़े कि फ़ज़ीलत से पिछले और आने वाले साल के गुनाह माफ़ फ़रमा।आप
स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मुहर्रम के रोज़े कि कुछ फ़ज़िलतें भी बयां कि है कि मैं
अल्लाह से उम्मीद रखता ही कि अल्लाह अरफ़े के रोज़े कि फ़ज़ीलत से पिछले और आने वाले साल
के गुनाह माफ़ फ़रमा। एक और हदीस में है आप स्वल्लल्लाहो
अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि यौमे आशूरा का रोज़ा पिछले और अगले साल के गुनाहो का कफ़्फ़ारा
है
Why we do celebrate Muharram?
आइये अब देखते है कि और कोनसी वजह जो
इसे इतना खास बनती है।
10 मुहर्रम को हज़रात मूसा अलैहिस्सलाम कि दुआ क़बूलस हु।
10 मुहर्रम को हज़रात इसा अलैहिस्सलाम आसमान पर उठा लिए गए।
10 मुहर्रम को ही हज़रात यूनुस अलैहिस्सलाम को मछली ने पेट से बहार निकला।
10 मुहर्रम को हज़रात Nooh अलैहिस्सलाम कि कश्ती तूफ़ान से किनारे लगी।
10 मुहर्रम को ही हज़रात इब्राहीम अलैहिस्सलम आतिशे नमरूद से बहार निकले।
10 मुहर्रम को ही हज़रात अय्यूब अलैहिस्सलाम को कीड़े से निजात मिली।
10 मुहर्रम को ही क़यामत भी क़ायम होगी।
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ज़िक्रे मुहर्रम हो और ज़िक्रे हुसैन न हो। खुदा करे कि हमारे मुँह में ऐसी ज़बान ना हो।
इसी दिन हज़रात इमाम हुसैन अपने पुरे कुनबे के साथ जिस कि तादाद ७२ थी हक़ व इंसाफ को ज़िंदा रखने के लिए। अपने नाना जान स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दीन को पामाल होने से बचने के लिए यज़ीदी फ़ौज के आगे पहाड़ बन के खड़े होगये। यहाँ तक कि अपना सब कुछ क़ुरबान करदिया मगर यज़ीद पलीद के सामने घुटने न टेके और नहीं उसकी बैत क़बूल की।
दोस्तों बड़ा ही दर्द भरा वाक़िया है आप हज़रात इसे हर साल सुनते हो की कैसे यज़ीद ने और कूफ़े के लोगो ने आप हुसैन रज़ि अल्लाह अन्हुमा को धोका दिया और कर्बला में बुला कर शहीद कर दिया।
जब तक ये दुनिया क़ायम रहेगी तब तक हुसैन हर इंसान के दिल में ज़िंदा रहेगा।
किसी शायर ने कहा है
क़त्ले हुसैन असल में मार्गे यज़ीद है। इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद।
और हज़रात ख्वाजा मोईनुद्दीन रहमत उल्लाह अलैहि ने ये भी कहा है की
शाह अस्त हुसैन। बादशाह अस्त हुसैन। सर दाद न दाद दर दस्ते यज़ीद। हक़्क़ा की बिना ला इलाहा अस्त हुसैन।
Muharram ul Haram 2023 | Is Muharram a happy festival? | What does Muharram mean? | मुहर्रमुल हराम 2021 | मुहर्रम का क्या मतलब है ?
Naazareen, Assalaamu Alaikum Islaam mein muharram ke maheene kee bahot ahamiyat hai. aksar va beshtar log muharram ke baare mein poochhate rahate hain. Aksar poochhe jaane vaale savaal
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To doston, jaisa ki mainne pahale kaha ki islaam mein muharram ki bahot ahamiyat hain.
Why we do celebrate Muharram?
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Zikre muharram ho aur zikre husain na ho. khuda kare ki hamaare munh mein aisee zabaan na ho.
Doston ab vo baat jo is maheene ko aur bhee zyada huramat vaala banatee hai ki isee din hamaare pyaare aaqa svallallaaho alaihi vasallam ke sabase pyaare navaase hazaraat imaam husain ne karbala ke maidaan mein apane aap ko qurbaan karadiya aur apane naana ke deen behuramatee se bacha liy.***END***
Likhne me bahot mashaqqat lagti hai agar koi galati dekhe to please islah ki niyyat se comment me zarur batae please
Bahot acchi malumat hai
ReplyDeleteSubhanallah
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