अजरबैजान और आर्मेनिया संघर्ष इतिहास
गुज़िश्ता इतवार
को आर्मेनिया और अजरबैजान नागोरनो-करबाख की एक नस्ली जंग ने 1994 के बाद फिर से अपना
खौफनाक चेहरा दिखाया। और अब ये पूरी तरह एक जंग में तब्दील हो चुकी है जाया एक तरफ
अजरबैजान के साथ तुर्की, ईरान पाकिस्तान खड़े हैं वही दूसरी तरफ आर्मेनिया के साथ रूस,
अमेरिका, और इजराइल वगैरा खड़े नज़र आरहे हैं। जो इस बात का खदशा पैदा करते हैं की अगर इस लड़ाई ने तूल पकड़ा
तो इसमें ये बड़े देश शामिल ना होजाए।
दोनों तरफ के
जानी माली नुकसान की खबरे आरही हैं। वही तुर्की ने खुल कर एलान कर दिया की वो हर तरह
से अज़रबैजान के साथ खड़ा है। जिसके चलते बैनुल अक़वामी इलज़ाम का सामना भी करना पड़रहा
है की तुर्की अज़रबैजान को उकसा रहा है। जो की एक गलत बात है। उसके फौजी अज़रबैजान के साथ
शाना बा शाना लड़ रहे हैं। जो
UAV और जंगी तय्यारो समीत तुर्क हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालाँकि तुर्की हुकूमत
ने इसकी तरदीद की है की वो अज़रबैजान को असलाह बरामद कर रहा है।
Azerbaijan and Armenia Conflict History
उधर तुर्की
के प्रेसिडेन्ट रजेब तय्यब अर्दोगान ने पहले ही साफ कर दिया की अज़रबैजान हक़ पर है और
हम उसके साथ है और उन्होंने ये भी कहा की इसके खिलाफ की जाने वाली सारी हिकायत और ना
इंसाफ़ी गलत होगी बल्कि गैर क़ानूनी भी होगी। और इसका सीधा नुकसान अर्मेनया को ही होगा।
उन्होंने रूस
फ्रांस और अमेरिका पर तनक़ीद करते हुए कहा की वो पिछले 30 सालों से इस मसले को हल करने
में नाकाम रहे हैं। और इस मसले को जानबूझ कर हल नहीं किया। और अब वो आकर हमे मशवरा
और धमकियाँ देते हैं और तांक झाँक करते हैं की क्या टर्किश यहाँ हैं या तुर्की की फ़ौज
यहाँ हैं?
Azerbaijan and Armenia Conflict History
दोस्तों ये
तो थी ताज़ा सूरत हाल जो अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच चल रही है। जो मुख्तलिफ ज़राय
से हमे मौसूल हुई और हमने आप तक पहुंचाई।
आइये
जानते है की माजरा
क्या है? दर असल
अज़रबैजान और अर्मेनिया के
बीच एक छोटा सा
इलाक़ा है, नागोरनो करबाख
एक पहाड़ी इलाक़ा है, और अर्मेनियाई
सरहद से 50 क.म. दूर
है
आर्मेनिया और अजरबैजान नागोरनो-करबाख की एक नस्ली जंग जो 1980 से अभी तक चल रही है | What is the conflict between Armenia and Azerbaijan?
जिसे नागोरनो कहा जाता है जिस का रकबा अंदाज़न 4400 मुरब्बा कम पर मुश्तमिल है। वैसे तो यहाँ अर्मेनियाई क्रिश्चन, तुर्क मुलिम दोनों रहते हैं। जब सेवियत संग बना तो इसी दौरान ये इलाक़ा भी सेवियत एरिया बन गया, जबकि इंटरनेशनल लेवल पर ये इलाक़ा अभी भी अज़रबैजान की ही प्रॉपर्टी है। लेकिन जान बूझ कर ये दिखाया जाता है की यहाँ अर्मेनियाई ज़्यादा तादाद में रहेते हैं। और इसी को वजह बना कर 1980 से 1990 तक चली झड़पों में तकरीबन 30000 से ज़्यादा लोगो ने जिसमे फ़ौज भी शामिल अपनी जान गवा। और इसी मजबूरी से 1000000 से ज़्यादा लोग यहाँ से पलायन कर गए।
फिर 1994 में एक समझौता के तहत जंग बंदी का एलान हुआ। मगर छूट पुट झड़पे अभी भी जारी रही। क्यूंकि ये जो इलाक़ा है करबाख का यहाँ अर्मेनियाई फ़ौज जबरन क़ब्ज़ा जमाये हुए थे और अब जब की जंग शुरू हो गई है तो अज़रबैजान अपनी पूरी शिद्दत के साथ इस इलाक़े को वापिस आज़ाद करने की जद्दो जिहद में लग गया है।हालाँकि अगर मुख्तलिफ सोरसों की माने तो कोई कहता है अज़रबैजान ने जंग बंदी तोड़ी और कोई कहता है अर्मेनियाई फ़ौज ने जंग बंदी तोड़ी। जबकि ये साफ़ नहीं हो पाया है की किस ने पहल की।
दोस्तों ख़बरें तो आप सभी को मुसलसल मिल रही होगी लेकिन मेरा इस पोस्ट को मेरा लिखने का मक़सद ये है की क्या अब भी मुस्लिम मुमालिक नहीं जागेंगे ? क्या जबरन हुकूमत का दौर अब अपने इख्तेताम पर है जैसा मैंने इसके पहले वाली पोस्ट मुसलमानों के उरूज का वक़्त करीब है | मुसलमानों के दौर का आगाज | Beginning of Muslim era में ज़िक्र किया था अगर आपने वो पोस्ट नहीं पढ़ी तो ज़रूर पढ़ें, और क्या तुर्की अपने मक़सद यानि मिशन 2023 की तरफ बढ़ रहा है? या इस खित्ते की बैनुल अक़वाइ सतह पर हैसियत के तौर पर दुनिया इसमें शामिल हो रही है? या फिर ये कोई दज्जाली साज़िशें हैं? ऐसे ही बहोत से सवालात ज़हन में उठ रहे हैं अगर आपके पास कोई जवाब हो तो हमे कमेंट ज़रूर करें और सारी उम्मते मुहम्मदी स्वल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के लिए दुआ करे की अल्लाह हर दज्जाली फ़ितने से हमारी और सारी उम्मत की हिफाज़त करें आमीन।
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Allah aalame Islam par rahem kare ameen
ReplyDeleteAllah aalame islam par rahem kate ameen
ReplyDeleteAmeen
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